लेखनी कहानी -05-Aug-2022 :- मेरी लेखनी
मेरी लेखनी:-
आप सभी को हार्दिक प्रणाम!!
मुझे आज सच में कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या लिखूं!! क्योंकि मेरी लेखनी के विषय में मुझसे ज्यादा तो मुझे पढ़ने वाले पाठक गण ही यह भली- भांति बता सकते हैं। परंतु, अगर इस विषय में कुछ लिखना ही है तो मैं आप सभी को मेरी लेखनी के पीछे का कारण बता सकती हूं।
मैंने जब से होश संभाला है। मुझे याद है वो दिन आज भी, जब मैं अटक अटक के पढ़ती थी, वो मेरे पढ़ने की शुरुवात थी। मेरे माता पिता ने तब से ही मेरे लिए किताबें लानी शुरू कर दी थीं। विद्यालय के शुरुवाती दिनों में भी कभी दिक्कत नहीं आई, क्योंकि वहां जाने से पहले ही घरवालों ने काफ़ी कुछ पढ़ना सीखा दिया था। बचपन से ही पापा ने कहानियों की किताबें ला दी थीं, यह सोचकर कि उनसे बढ़ा शिक्षक कोई नहीं हो सकता। फिर धीरे धीरे जब बड़ी हुई तो मम्मा ने गर्मियों की छुट्टियों में उनके विद्यालय से पुस्तकें लाकर दी, क्योंकि वो एक अध्यापिका रह चुकी हैं। हर छुट्टी में यही क्रम होता था। कुछ पुस्तकें साहित्य से जुड़ी थी, कुछ प्रेरणादाई कहानियों से, कुछ कविताओं की, कुछ चुटकुलों की। उनको जब तक पढ़ ना लूं मुझे सुकून ही नहीं मिलता था।
बचपन से ही मुझे हर चीज का शौक रहा है, और पढ़ना भी उनमें से एक है। फिर जब और थोड़ा बड़ी हुई तो निबंध प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगी। तब मेरी शिक्षिका कहती थीं कि तुम कभी लिखना मत छोड़ना। उन्हें मेरे विचार, मेरी लेखनी बहुत पसंद थीं। उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन मिला। पहले तो मैं नहीं लिखती थी, क्योंकि विज्ञान की शिष्या होने के कारण साहित्य का इतना ज्ञान नहीं था। विज्ञान की पढ़ाई थोड़ा मेहनत भी ज्यादा ही करवाती है, तो समय का अभाव लगता था। कभी लगता कि कुछ गलत न लिख दूं। कभी थोड़ा बहुत लिखा तो भी पोस्ट करने में डर लगता था। मेरे एक भाई ने मुझे काफ़ी बढ़ावा दिया मुझे समय निकालकर लिखने को कहा, उसको भी लगता था शायद, कि मैं कुछ लिख सकती हूं।
परंतु लिखने की असली यात्रा तब आरम्भ हुई जब खुद को और गहराई से जानने की लालसा मन में आई। तब अपने आप कलम हाथ में आ गई। जब कुछ कुछ खुद से जुड़ी धीरे धीरे बाकियों से भी जुड़ने लगी। उनकी समस्याओं में अपनी समस्या नजर आने लगी। उनको राह दिखाते दिखाते मुझको राहें मिलने लगीं। जब भी किसी को मेरे कारण थोड़ा सा भी अच्छा महसूस हुआ। वो मेरे लिए प्रेरणादाई बना। जब किसी को बुरा महसूस हुआ उससे मेरी लेखनी और भाषा शैली में विकास उत्पन्न हुआ। भाषाओं में तो हमेशा सही रही हूं, क्योंकि घर में जब सभ्यता का माहौल होता है, तो भाषा शैली में सुधार जल्दी आ जाता है, विनम्रता जल्दी आ जाती है।
सच तो यही है कि मैं इसीलिए मेरी लेखनी के बारे में कुछ नहीं लिख सकती, क्योंकि मैं अभी भी सीख ही रही हूं। जितनी यात्रा लेखन में मैंने की है, उसका क्रेडिट सभी को जाता है। मेरे माता पिता, शिक्षक आस पास के लोग मेरे मित्र, कोई ना कोई कुछ न कुछ सीखा ही जाता है। पापा बहुत कविताएं लिखते थे पहले, और मैं उनकी लिखी हुई कविताओं को बोला करती थी, विद्यालय की प्रतियोगिताओं में। तो लेखनी का सबसे ज्यादा गुर शायद वहीं से आया है। नानाजी संगीत के शिक्षक थे, उन्होंने कई फिल्मों में संगीत की धुनें भी दी थीं, तो शायद गाने का यह गुण वहां से आया है। मम्मा शिक्षिका होने के कारण बोलचाल में हमेशा से ही सुधार करती रहीं हैं, हमेशा विनम्रता का पाठ पढ़ाती रही हैं। तो यह गुण वहां से आया है। तो मैं आज जो कुछ लिख या गा पा रही हूं, वो सब इन्हीं सबकी देन है, मेरा तो इसमें कुछ है ही नहीं । इसीलिए मैं इन सभी की बहुत आभारी हूं और खुद की आभारी इस बात के लिए हूं कि हमेशा सीखने के लिए तत्पर रहने का शौक और साहस के कारण, कुछ नया करने की लालसा के कारण आज थोड़ा बहुत योगदान दे पा रही हूं। पापा को जब भी मेरी लेखनी दिखाती हूं वो कहते हैं, तुम से अच्छा लिखने वाले बहुत हैं। उनकी यह बात मुझे स्वयं पर और काम करने के लिए तैयार करती रहती है। और जब अलग अलग मंचों पर सबको पढ़ती हूं तो उनकी बात बहुत स्पष्ट और सही लगती है। उन सभी लेखकों से बहुत कुछ सीखने को मिला है और अभी भी मिल रहा है।
जब इस मंच से जुड़ी तो लेखनी के साथ लोगों से भावनात्मक रूप से जुड़ने की कला भी सीखने को मिली और मिल रही है। इसीलिए आप सभी की भी मैं बहुत आभारी हूं।
अंत में इतना ही कहना चाहूंगी कि आज भी जब कलम उठाती हूं तो एक बार कदम पीछे ज़रूर जाते हैं, पर हारने के लिए नहीं कुछ सीखने और सिखाने के लिए खुद को तैयार करने के लिए। साहित्य का ज्ञान नहीं है, परन्तु, आत्मा से जो आवाज़ महसूस होती है, चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक उसे लिखती ज़रूर हूं। नकारात्मक को भी जब लिखती हूं तो कोशिश करती हूं अंत सकारात्मक हो। कहते हैं ना अंत ही एक नई यात्रा का आरंभ होता है। जब सकारात्मक अंत होगा तो अगली यात्रा भी सकारात्मकता से ही आरंभ होगी, इसी कामना के साथ मैं यह कोशिश करती हूं। यदि मेरी लेखनी के कारण एक जीवन भी बच पाता है, या संवर पाता है, तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
इतना पढ़ने के लिए धैर्य रखने हेतु आपका हार्दिक आभार !!
स्वाति शर्मा (भूमिका)
#नॉन स्टॉप 2022
Parangat Mourya
13-Feb-2023 10:19 PM
Behtreen 👌🌸
Reply
Gunjan Kamal
09-Feb-2023 08:13 PM
शानदार
Reply
Sachin dev
06-Aug-2022 09:11 PM
Very nice 👍
Reply
Swati Sharma
07-Aug-2022 12:00 AM
Thank you 🙏🏻☺️
Reply